पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ


शहडोल। पंडित शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ यह कार्यशाला विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी दिशा निर्देश अनुसार भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर विस्तृत चर्चा एवं विमर्श से नई शिक्षा प्रणाली में अधिक सुधार के लिए एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से युवा पीढ़ी अवगत होगी, इस उद्देश्य से रखी गई थी कार्यशाला का शुभारंभ अतिथियों के आगमन एवं मां सरस्वती के पूजन -अर्चन से हुआ सरस्वती वंदना के पश्चात अतिथियों का आत्मीय स्वागत विश्वविद्यालय परिवार के द्वारा किया गया।

विषय प्रवर्तन करते हुए प्रोफेसर प्रमोद पांडे ने अपना उद्बोधन दिया और कहा कार्यशाला में भारतीय ज्ञान परंपरा में रसायन विषय के संगठनात्मक तत्वों और विचारों का परिचय होगा एवं वर्तमान आधुनिक समय में प्रचलित पाठ्यक्रम के संदर्भ में विमर्श होगा यह विमर्श नवीन शिक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी होगा ऐसा मेरा मानना है|  भारतीय मनीषा में वेद वेदांत त्याग तपस्या न्याय निर्णय से युक्त शिक्षा पद्धति थी और उसे शिक्षा पद्धति के द्वारा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास निश्चित था किंतु इस परंपरा को हम छोड़ चुके हैं और अधुनातन परंपरा की शिक्षा में अपने आप को झोक चुके हैं वर्तमान समय पुनः उसी  शिक्षा पद्धति को जागृत करने का है इसी उद्देश्य से यह कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है| 

प्रोफेसर महेंद्र भटनागर ने विषय प्रवर्तन के वक्तव्य को आगे बढ़ते हुए अपने विचार रखे और कहा कि रसायन विषय में भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध शोध प्रविधियां पर विमर्श और इन्हें परिमार्जित कर नवीन शोध प्रवृत्ति निर्माण करने पर विचार विमर्श होगा| NEP 2020  में रसायन शास्त्र के मुख्य गौड़  और वैकल्पिक विषयों के पाठ्यक्रम  की समीक्षा और भारतीय ज्ञान परंपरा में उपस्थित तत्वों विचारों और सिद्धांतों तथा स्थान समाहित किए जाने के संदर्भ में तथ्यात्मक और तार्किक सुझाव इस कार्यशाला से प्राप्त होंगे जिन्हें विषय में सम्मिलित किया जा सकेगा| 


भारतीय ज्ञान परंपरा में रसायन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर प्रोफेसर रमेश चंद्र भारद्वाज, कुलगुरु ,महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय (कैथल) हरियाणा ,आभासी रूप से विषय विषय विशेषज्ञ के रूप में अपने उद्बोधन में कहा कि विगत कुछ दशकों से भारत और भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति संपूर्ण विश्व का बौद्धिक जगत आकृष्ट दिखाई देता है भारत में रसायन शास्त्र अति प्राचीन परंपरा रही है पुरातन  धातुओं  के गुण व्यवहार  तथा मिश्र धातुओं की अदभुत जानकारी उपलब्ध है इन्हीं में रासायन में प्रयुक्त होने वाले सैकड़ो उपकरणों को भी विषय विवरण में मिलता है भारतीय ज्ञान परंपरा में दर्शन और ज्ञान की एक महत्वपूर्ण और प्रभावी परंपरा रही है जो ऐतिहासिक रूप से पश्चिम परंपरा की तुलना में अधिक प्राचीन समृद्धि और व्यापक है प्राचीन भारत ने सैद्धांतिक समाज व्यावहारिक अनुप्रयोगों और प्रयोगशाला तकनीक की प्रगति के साथ रसायन विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित यह दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला भारतीय ज्ञान परंपरा में रसायन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में हम बहुत कुछ सीखेंगे और उसे आने वाले कोर्स में सम्मिलित करेंगे| 

प्रोफेसर राजकुमार आचार्य कुलगुरु अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे और अपने मुख्य अतिथि उद्बोधन में उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में रसायन विज्ञान और प्रौद्योगिकी की एक विशाल कैनवास पर उतरा हुआ विषय है भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध संदर्भ के अंतर्गत आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला जो मंथन होगा वह निश्चय ही इस देश और समाज के शिक्षा परंपरा के लिए एक मुख्य मंथन के रूप में उभर कर सामने आएगा हम अपनी शिक्षा में कुछ उन पुरानी परंपरा को भूल चुके हैं जिन परंपराओं के द्वारा त्याग, संतोष ,संवेदना शिक्षा से प्राप्त होती थी वर्तमान समय व्यक्ति मशीन के रूप में काम कर रहा है इन परंपराओं को भूल चुका है और यह शिक्षा के लिए सबसे चुनौती पूर्ण बन चुका है जब हम उन परंपराओं को समाहित कर अपनी अद्भुत ज्ञान को से भारतीय मनीषा के अंतर्गत शिक्षा को जोड़ेंगे और और उसे अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर छात्रों तक पहुंच जाएंगे तो पुरानी शिक्षा पद्धति पुनः  जागृत हो जाएगी और ज्ञान की एक निर्मल प्रवाहमयी गंगा का विस्तार होगा।

प्रोफेसर रामशंकर, कुलगुरु पण्डित शम्भूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा ॐ की परिकल्पना हमारे वैदिक और पुरातन शिक्षा पद्धति की परिकल्पना है|  और इसका रासायनिक प्रयोग सभी के समक्ष शिद्ध कर दिखाया सभी मंत्र मुग्ध राह गए उन्होने कहा कि वर्तमान रिसर्च से पता चला है कि ॐ के उच्चारण मात्र से कैंसर सेलो में बृद्धि नही होती और उनका शरीर मे दुष्प्रभाव रुक जाता है।हम वर्तमान समय मे अभ्यन्तर की यात्रा से विलग बाह्य यात्रा में फसे हुए है इसलिए मूल विन्दुओं से विलग है सबकुछ हमारे मन और मस्तिष्क में भरा है बस उसे समझने की आवश्यकता है।

प्रो अर्पण भारद्वाज ने अपने उद्बोधन में विषय की बारीकियों पर विस्तार से चर्चा की और मप्र सरकार द्वारा संचालित कार्यशाला के विषय मे अभिव्यक्ति और उद्देश्य पर प्रकाश डाला।

प्रो आशीष तिवारी कुलसचिव द्वारा सभी आगन्तुको प्रतिभागियों का आभार ज्ञापित किया गया

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