अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा रीवा-शहडोल संभाग प्रोफेसर आरपी सिंह ने अपने उद्बोधन ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को विकसित करने और उसे नवीन पाठ्यक्रम में समाहित करने के लिए ,समस्त विश्वविद्यालय में शोध संगोष्ठियों का आयोजन किया जा किया जा रहा है इसमें विषय बार विद्वानों का चयन किया गया है मंथन चल रहा है निश्चय ही विचारों का मक्खन निकलेगा दिशा मिलेगी और लक्ष्य पूरा होगा।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अशोक कंडेल ने उद्बोधन में कहा कि आज इस प्रकोष्ठ के सफल गठन के लिए प्रोफेसर रामशंकर कुलगुरु को आत्मीय साधुवाद देता हूं और नई शिक्षा नीति की शुरुआत हुई है यह हमारे भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रकाशित करने के लिए भारत से कई सुझावों के माध्यम से अपनी आहुति दी है जिससे यह लगता है जिससे यह लगता है की यह अपनी भारत की शिक्षा नीति है और हम सब की शिक्षा नीति है नवीन शिक्षा नीति में नए-नए प्रयोग किया जा रहे हैं जिस पर निरंतर शोध चल रहा है|
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हैं कुलगुरु प्रोफेसर राम शंकर ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को समझने के लिए जरूरी है कि किसी भी ज्ञान परंपरा में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न क्या है? इसे समझना जरूरी है हमारा दर्शन हजारों वर्षों पुराना है आदिकाल से हमारे भारत के ऋषि मुनियों ने शोध पर शिक्षा प्रणाली को स्थापित करने के लिए किस विधि से ज्ञान प्राप्त किया यह समझना और जानना आवश्यक है हमारी शिक्षा प्रणाली सदैव ज्ञान विज्ञान संपन्न रही है, सुचिता है विश्वास है और मानवता और अनुशाशन का समन्वय दृस्टि गोचर होता है हमारे ज्ञान विज्ञान और विचारो को समझ कर ऐसे कई पश्चात देश हैं जो भारत पहले सिद्ध कर चुका है उन्हें सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं|
कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. आशीष तिवारी ने सभी का हृदय से आभार ज्ञापित किया और विश्व विद्यालय में हिंदी अकादमी प्रकोष्ट प्रारम्भ होने की बधाई दी। मंच संचालन डा. आदर्श तिवारी, क्रीड़ा अधिकारी द्वारा किया गया।


Post a Comment