जर्जर भवन में नौनिहालों पढ़ने को मजबूर, न शौचालय न खेल मैदान, जिम्मेदार मौन

कभी भी हो सकती है अप्रिय घटना, बज रही हैं खतरे की घंटी,  पढ़ाई पर पड़ रहा बुरा असर


शहडोल/अनूपपुर(सीतेंद्र पयासी)। सबको शिक्षा का अधिकार अभियान के तहत शासन प्रशासन द्वारा जिले व संभाग में शिक्षा व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं बावजूद इसके  जिले की शिक्षा व्यवस्था सुधरती नजर नहीं आ रही है। बच्चों को बेहतर शिक्षा और संस्कार मुहैया कराने के नाम पर हर साल लाखों करोड़ों रुपए का बजट खर्च होता है लेकिन क्या इन बच्चों को वास्तव में वह सुविधा मिल पा रही हैं जिनके वह हकदार हैं? यह देखने वाला कोई नहीं है। चुस्त दुरुस्त शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों पर यह कोई आरोप नहीं बल्कि वह कड़वी सच्चाई है जिसकी पुष्टि संभागीय मुख्यालय के सोहागपुर स्थित मंदिर शाला को देखकर की जा सकती है।

                          बहुत पुराना भवन

बताया जाता है कि संभाग मुख्यालय के अति प्राचीन मंदिरों में से एक श्री राम जानकी मंदिर सोहागपुर वार्ड नंबर 4 का निर्माण रीवा रियासत के पूर्व महाराजा रघुराज सिंह द्वारा सैकड़ो साल पूर्व कराया गया था। सार्वजनिक उपयोग के लिए महाराजा द्वारा निर्मित कराए गए इस प्राचीन मंदिर के सामने धर्मशाला के नाम पर मंदिर के सामने सड़क के किनारे एक भवन का निर्माण कराया गया था ताकि दूर दराज से आने वाले साधु, महात्मा, संतो  को धर्मशाला के रूप में बनाए गए इस भवन में आश्रय प्राप्त हो। कथित धर्मशाला का उपयोग आश्रय के रूप में तो नहीं हो सका, कालांतर में जिला प्रशासन द्वारा उक्त भवन में प्राथमिक शाला का संचालन आरंभ कर दिया गया। दो कमरों की इस प्राथमिक शाला ने कई बड़े नामी डॉक्टर, इंजीनियर व प्रशासनिक अधिकारी दिए हैं। मंदिर शाला कभी सोहागपुर का नामी स्कूल हुआ करता था लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। जर्जर भवन और समस्याओं के अंबार ने छात्रों, अभिभावकों को इस शाला से दूर कर दिया। नाम मात्र के बच्चे पढ़ने आते हैं और उनकी भी जान कब तक सुरक्षित है यह कहां नहीं जा सकता है।

                          कहा पढ़े नौनिहाल

चौबीसों घंटे व्यस्त रहने वाली सड़क से महज डेढ़ से तीन मीटर की दूरी पर स्थित शाला भवन में पढ़ने वाले बच्चों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह आखिर जाएं कहां? शिक्षा के साथ खेल जरूरी है, सच भी है, लेकिन मंदिर शाला के बच्चे कहां खेलें, क्या खेलें? फुटबॉल,हॉकी, क्रिकेट तो दूर यहां गिल्ली डंडा, बंटी, या छुपम छुपाई खेलने की जगह भी नहीं है। संपन्न वर्ग के होते तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे होते, गरीबों के यह बच्चे आखिर जाए तो जाए कहां?

                      नाम मात्र की छात्र संख्या

महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि मंदिर शाला सोहागपुर में छात्र संख्या नाम मात्र की है। विद्यालय के समय पर सड़क से गुजरने वाले  लोगों की यही प्रतिक्रिया होती है कि यहां तो बच्चों से ज्यादा शिक्षक हैं यदि बच्चे नहीं आ रहे हैं या संख्या कम है और स्थान का भी अभाव है तो इस विद्यालय को किसी और विद्यालय में शासन क्यों नहीं मर्ज कर देता है। इसी विद्यालय से मात्र 200 मीटर की दूरी पर कमला प्राथमिक शाला है जहां इस शाला को मर्ज किया जा सकता है।

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