शहर में ना रोजी ना रोजगार फिर भी पैसे का अंबार , ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना जिसने घरौला पर की धन - वर्षा

 सट्टा किंग की मेहरबानी से घरोल्ला मोहल्ला हुआ गुलजार


शहडोल(सीतेंद्र पयासी)। आदिवासी अंचल कहलाए जाने वाला शहडोल जिला जहां पर घनी आबादी के बीच में रोज मर्दा की जिंदगी जीने के लिए लोग संघर्षशील रहते हैं। रोटी रोजगार और मकान यह तीन सबसे महत्वपूर्ण चीज हैं जिससे एक आम आदमी अपने वह अपने परिवार का भरण पोषण कर पाता है। लेकिन खाली आबादी वाले शहडोल जिले में यदि शहडोल नगर की ही बात करें तो यहां पर जितनी नगर की जनसंख्या है उसमें से नवयुवकों में बेरोजगारी की मात्रा सबसे ज्यादा है। यहां पर रिलायंस अल्ट्राटेक जैसी बड़ी कंपनियां अपने बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रही है लेकिन यहां के स्थानीय को रोजगार नहीं दे पा रही है। यह बात बिल्कुल सत्य है। 

आबादी के हिसाब से शहर में रोजगार के साधन कम है और यही कारण है कि यहां बेरोजगारी ज्यादा है। यदि व्यवसायों की बात करें तो छोटे व्यवसायियों की मात्रा यहां पर अधिक संख्या में है। ऐसे में यहां के लोगों के लिए आजीविका के साधन भी किंचित मात्र है। 

इसके बाद भी नगर के गांधी चौक से लेकर बुढार चौराहा तक नवधानतड्य पूंजी पति आए दिन जन्म ले रहे हैं। 

सुत्रो कि माने तो जिसमें घरौला मोहल्ला इन दिनों इसका केंद्र बिंदु बना हुआ है। यहां पर न जाने कुबेर का कौन सा ऐसा खजाना छुपा हुआ है कि जिससे यहां के कुछ चुनिंदा लोग आज ही बनिया कल ही सेंठ वाली कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं।

गांधी चौक से लेकर बुढार चौराहा के मध्य में सूदखोरी व तीन पत्ती जैसे कई काल कामों सुगमता से अंजाम दिया जा रहा है। हालांकि इन कामों को कौन अंजाम दे रहे हैं और किस पैमाने पर यह काम किसके इशारे पर चल रहा है इन सभी बातों को एक-एक कर खोला जाएगा फिलहाल तो इतना जान लीजिए की। एशिया की धमक शहडोल में गूंज रही है।

बिना रोजी और रोजगार के डायरेक्ट ऊंची चलांग लगाने वाले यह सिंडिकेट के बंदर काफी उछाल रहे हैं। 

पैसे की चमक और प्रशासन को धमक

कहते हैं पैसे की चमक इंसान को अंधा बना देती है जिसके आगे उसे सही गलत का कोई भी अंदाजा नहीं रह जाता है। ऐसा ही हाल इन दिनों नगर के घरौला मोहल्ला बना हुआ है जहां पर व्हाइट कलर बन कर करोड़ों रुपए की हेरा फेरी की जा रही है। जिससे माहौल ऐसा बना हुआ है कि प्रशासन को भी धमक देने की सोच यह वाइट कलर के नकाब पहने हुए दो नंबरी लोग देना चाहते हैं। 

अगर हुई प्रशासनिक स्तर पर संपत्ति की जांच आयकर में आ सकते हैं नाम

शहर में बिना नौकरी बिना रोजगार लोग जहां दो वक्त का खाना जुटा पाने में असहजता महसूस कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर यह वाइट कलर का नकाब पहने हुए दो नंबरी लोग बिना किसी नौकरी और रोजगार के ही आय से अधिक संपत्ति बना रहे हैं। और अपुष्ट सूत्रों की माने तो प्रशासन को इस पूरे मामले की कहानी न कहीं भनक है उसके बावजूद भी इन पर कार्यवाही नहीं हो रही है। तो सवाल यह है कि क्या इस प्रकार दो नंबर का कार्य करने वाले आज एक नंबर के हो गए हैं और समाज के अग्रिम पंक्ति में खड़े होने के लायक हो गए। अगर ऐसा है। तो फिर एक स्वच्छ समाज के लिए यह एक कीचड़ से ज्यादा और कुछ भी नहीं जहां कमल तो नहीं खिल सकता है।

फिलहाल इस पूरे मामले में प्रशासन की चुप्पी ने इन दो नंबरियों के हौसलों को बुलंद कर रखा है।

कोई होटल तो कोई कैटर्स तो कोई संचालित करता है दुकान यह सब है दिखाने का काम ... ‌‌..... अगले अंक में

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